हिंदी दिवस विशेष। आज हिंदी के महत्व और प्रभाव के बारे में गंभीरता से विचार नहीं किया जाता -डॉ मेनका त्रिपाठी ,

डॉ मेनका त्रिपाठी

हरिद्वार। हिंदी दिवस 14 सितम्बर, आज दिन विशेष है! दिन को विशेष बताने से दिन का महत्त्व बढ़ जाता है साथ ही परंपरा है कि भूली हुई चीजों को पुनः दोहराया जाता है! आज हर दूसरा व्यक्ति बता सकता है कि हिंदी मातृ भाषा है, अधिक कुरेदने पर कहेगा कि सब को सम्मान करना चाहिए परंतु सही मायने में आज हिंदी के महत्व और प्रभाव के बारे में गम्भीरता से विचार नहीं किया जाता जो चीज़ हमे सहजता से मिल जाया करती है अक्सर उनकी उपेक्षा करते हैं जैसे हवा जैसे धूप!

पर वर्तमान हालातों पर नजर डाले तो करोना की अवधि मे हमे उन सभी बातों पर गौर करना पड़ा है जिनको नजरअंदाज किया है! भाषा केवल सम्प्रेषण का सेतु नहीं अपितु किसी जाति की अस्मिता और संस्कृति की वाहक होती है, मनुष्य का सम्पूर्ण ग्यान, अनुभव, विचार भाषा ही मे निहित होते हैं! राष्ट्रप्रेम अपनी भाषा में ही विकसित होता है इसीलिये मैकाले ने संस्कृत और हिन्दी अन्य बोलियों को हटाकर अंग्रेज़ी को शिक्षा का माध्यम बनाया था!
बहुत दुख होता है जब आज के युवा कान्वेंट सभ्यता का मूल जाने बिना हिन्दी की उपेक्षा करते हैं, किसी फिल्म में जब हिंदी के संवादों को उपहास का केंद्र बनाया जाता है! मैकाले ने जो गुलाम परम्परा विकसित की थी कहीं न कहीं आज भी कायम है

मेरे हिन्दी दिवस पर निजी उद्गार है कि मैं अपने व्यक्तित्व मे सर्वाधिक विशेष हिन्दी को मानती हूं कि यह मेरे स्वाभिमान की भाषा है! मेरे निज गौरव की भाषा है! मेरे सुख-दुख की भाषा है! यह मेरी सोच और अस्मिता का अंग है!लोगों की धारणा कि अंग्रेजी विश्व भाषा है एक शुद्ध भ्रम और मिथ्या है!

जब छोटी थी सोचती थी पहाड़ों के पार क्या दूसरी दुनिया होती है क्या बादलों तक पहुंच सकते हैं, सब कल्पनायें यथार्थ बनी जब 11 वे विश्व हिंदी सम्मेलन मे शिरकत का अवसर हिन्दी ने ही दिया और मैं पहाड़ो, बादलों की दुनियाँ पार कर विश्व के मंच पर जय हिंद और हिन्दी का उद्घोष कर आई थी

आज स्थिति ऐसी है कि हिंदी दिनोंदिन व्यवहार में भी जाग रही है! आज हिंदी देश के बड़े हिस्से के सम्वाद बोलचाल अभिव्यक्ति की भाषा है, जो हमें नई ऊर्जा दे रही है! आज देश का नागरिक अभिमान से कह सकता है हिंदी उसकी भाषा हैं! देवनागरी लिपि का वैज्ञानिक चेहरा हमारी हिंदी का चमकता हुआ सच है!, गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि सूर नर मुनि की यह सब रीति
स्वारथ लागि करहिं सब प्रीति
भाषा भी इससे अछूती नहीं है अगर वह आपकी स्वार्थ सिद्धि का जरिया है आप के विकास और पहचान का जरिया है तो उसे आसानी से अपनाएंगे तो आप उसके ग्रहणशीलता और विस्तार को लेकर अधिक संवेदनशील होंगे उसे अपनाने में जरा सा भी नहीं हिचकेंगे, आज की जरुरतों और संदर्भों मे हिन्दी की अनिवार्यता तेजी से बढ़ी है!

हमे अपनी जड़ों को न भूलना चाहिए और याद रखना चाहिए कि जबसे हमने अपनी भाषा का सम्मान करना छोड़ा, तभी से हमारा अपमान अवनति होने लगी!

आज सोशल मीडिया में देख रही हूं हिंदी का दायरा बहुत बढ़ा हुआ पाया है! कुछ साल पहले तो हम सिर्फ अंग्रेजी और रोमन में लिख सकते थे और अब इसमें सीधे हिंदी लिखना कितना आसान हो गया है, जिसमें हम अपनी अभिव्यक्ति सीधे-साधे ढंग से हिंदी में लिखकर आप तक पहुंचा देते हैं!दरअसल आज के संदर्भ मे हिन्दी के प्रचार प्रसार मे खासा सहयोग मिला है! आभासी सहायक, टूल्स, उपकरण हिन्दी समझने लगे हैं किसी भी भाषा का अनुवाद आज हिंदी में सहज हुआ है! फ्री लैंग्वेज dictionary इत्यादि अनेक उपयोगी साधनो से हिदी विश्व पर परचम लहरा रही है! ,

संस्कृत मां है, हिंदी गृहणी और अंग्रेजी नौकरानी यह कहा था फादर कामिल बुल्के ने… जो एक विदेशी थे!
हिंदी से लगाव हिंदी वालों को तो है ही विदेशी भी हिंदी को लेकर काफी उत्साहित रहते हैं! अपनी मीठी जुबान है इसकी! इंटरनेट के युग में हिंदी पर चर्चा करें तो हिंदी के विस्तार में तकनीकी योगदान को बिल्कुल भी नहीं नकारा जा सकता, आज से 15 साल पहले मैं नहीं समझती इंटरनेट के मोबाइल पर हिंदी में लिखना संभव था लेकिन आज शायद ही कोई मोबाइल कंपनी है, जो हिंदी बोलना का कीबोर्ड ना देती हो! इंटरनेट पर भी तमाम हिंदी कीबोर्ड आ गए हैं जो हिंदी भाषियों को एक दूसरे से जोड़ रहे हैं आज हिंदी दिवस पर बहुत कुछ बोला लिखा जा सकता है बशर्ते उसे उतनी ही शिद्दत से सुनने समझने वाले लोग हो!

किसी राष्ट्र की राजभाषा वही भाषा हो सकती है जिसे अधिकतर निवासी समझ सके लेकिन आज दुख की बात है अपनों को उपेक्षित कर बाहरी संस्कृति सभ्यता से जुड़ रहा है भारत इस प्रश्न पर विचार करना होगा कि राष्ट्रीय एकता की कड़ी हिंदी ही होती है हिन्दी ही हो सकती है जो हमे आपस में जोड सकती है! यह एक जीवित भाषा है! हिंदी के सहयोग से ही प्रांतीय भाषाएं विकसित हो सकती है मेरा निजी विचार है और मुझे कुछ संदेह निर्मूल लगते हैं कि हिंदी उर्दू या अंग्रेजी का नाश कर देगी!
भाषा चूंकि हमारी संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है इसलिए जैसा जुड़ाव मैं हिंदी से महसूस करती हूं बस अंग्रेजी से तो कभी नहीं कर पाई! हमारी संस्कृति का हिस्सा है हिंदी… संस्कृति और परंपरा को प्रेम करना मेरे लिए गौरव की बात है!
भवानी प्रसाद मिश्र जी की पँक्तियाँ दोहराते हुए एक ही बात आज हिंदी दिवस पर कहूँगी
जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख
और इसके बाद भी हमसे बड़ा तो दिख!

जय हिंद जय हिंदी

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