कोरोना पीडितो का दर्द भी सुनिए, कोरोना की आड मे ये क्या हो रहा है समाज मे,

हरिद्वार/ आशीष मिश्रा

हमारे समाज मे शुरु से ही जब लोग बीमार होते हैं तो उनके पड़ोसी और रिश्तेदार ना केवल उनका साथ देते हैं बल्कि हिम्मत भी बढ़ाते हैं।
लेकिन आधुनिकता के इस दौर में तेजी से बदलती जीवनशैली ने हमे ना केवल स्वार्थी बल्कि हमारी सोच को जानवरों से बद्दतर बना दिया है। जी हां, हम बात कर रहे हैं कोरोना पीड़ितों की। कोरोना को हरा चुके लोगों के प्रति उनके पड़ोसियों और रिश्तेदारों का बदला व्यवहार सामाजिक पतन की ओर इशारा कर रहा है। ऐसा ही एक अनुभव हमसे यूपी के रामपुर की रहने वाली श्वेता वर्मा ने साझा किया। श्वेता का जन्म हरिद्वार में हुआ और उनकी शादी रामपुर में। आयकर विभाग में वरिष्ठ पद पर तैनात श्वेता बीते जुलाई महीने में कोरोना पॉजिटिव पाई गईं… उनके पति और एक बेटे में भी कोरोना की पुष्टि हुई। लेकिन बिना किसी हिचकिचाहट के पूरे परिवार ने सरकारी गाइडलाइन का पालन करते हुए खुद को ठीक कर लिया। समय के साथ कोरोना तो छूमंतर हो गया पर समाज की हीन भावना ऐसी हावी हुई कि इस परिवार के प्रति लोगों का व्यवहार बदल गया जिसने श्वेता को अंदर से झकझोर दिया। श्वेता के अनुसार लोगों को अपनी सोच बदलनी चाहिए।
दुनिया में कोरोना वायरस का ख़तरा बढ़ने के साथ ही इसे एक सामाजिक कलंक की तरह देखा जाने लगा है.
कई जगहों पर लोग मरीजों के प्रति सहानुभूति रखने के बजाय असंवेदनशीलता दिखा रहे हैं. टीबी और एड्स की तरह ही लोग कोरोना वायरस में भी मरीजों और उसके करीबियों से अछूत की तरह व्यवहार कर रहे हैं.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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